"योग कर्मसु कौशलम्" - योग ही क्रिया हैं

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जीवात्मा का परमात्मा से एकीकरण ही योग है। संस्कृत भाषा की युज क्रिया रूप से निकला है जिसका अर्थ है जोड़ना या मिलाना

पतंजलि के अनुसार- योग चित्रवृत्ति निरोध है।

वेद व्यास के अनुसार- योग समाधि है।

भगवत गीता के अंदर भगवान श्री कृष्ण ने कहा है - योग कर्मसु कौशलम्।

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योग का इतिहास बहुत पुराना है। योग कब से प्रारंभ हुआ उसके बारे में एक मत से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन इतना अवश्य है कि योग भारतवर्ष की ही देन है।जो प्रमाण इसकी उत्पत्ति के बारे में अभी तक मिले उनके अनुसार, योग का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता के साथ जुड़ा हुआ हैं। जो लगभग 3000 ईसा पुर्व मानी जाती हैं। उस समय के व्यक्ति योग अवश्य करते थे। योग इतिहास के बारे में हमें गौण स्रोतों पर ही निर्भर करना पड़ता है, क्योंकि जिस भाषा का सिन्धू घाटी की सभ्यता में प्रयोग होता था, उससे हम आज भी अनभिज्ञ हैं। अतः केवल मूर्तियों के आसनों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि योग सिंधु घाटी की सभ्यता के समय में भी होता था, यह भी हो सकता है कि योग इस सभ्यता से भी पुराना हो। वेदों, उपनिषदों, रामायण तथा महाभारत में भी योग क्रियाओं का वर्णन किया गया है। लेकिन पतंजलि के योगसूत्र में योग का शास्त्रीय वर्णन प्राप्त होता है, जो लगभग 147 ईसा पूर्व में लिखा गया। कबीर, सूरदास तथा तुलसीदास जी ने व्यक्ति अपनी रचनाओं में योग का वर्णन किया है। योग आज के दौर में भी भारतीय संस्कृति का मुख्य अंग है ।

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आधुनिक युग मानसिक दबाव, तनाव व चिंताओ का युग है। यह एक सार्वभौमिक सत्य है। आज का व्यक्ति खुशियों से भरपूर जीवन नहीं जी रहा है। मनुष्य भौतिकवाद में विश्वास कर रहा है। व्यक्तियों के लिए आज धन ही माता है, पिता है तथा स्पष्ट शब्दों में कहें तो धन ही भगवान है। बिना नींद की गोली लिए उनको नींद नहीं आती उनका जीवन कष्टमय है। अतः यह कहा जा सकता है किआज के युग में व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, लेकिन उसे कोई भी खुशी नहीं है।

प्रत्येक व्यक्ति जल्दी में है। मनुष्य के पास खाली समय या अवकाश के बारे में सोचने का समय भी नहीं है। प्रत्येक वस्तु की समय सीमा है तथा मनुष्य उनके पीछे दौड़ रहा है। इसी कारण शारीरिक थकावट, मानसिक तनाव व दबाव छुटकारा प्राप्त करने के लिए मनुष्य ने एक कुछ साधन निर्मित कर लिए हैं, फिर भी वह विभिन्न जटिल समस्याओं में डूब रहा है। अधिकतर व्यक्ति इसी प्रकार का जीवन बिता रहे हैं ऐसे व्यक्तियों को यह समस्या अधिक मानसिक व भावनात्मक रूप से प्रभावित कर रही हैं। इसी के परिणाम स्वरूप ऐसे व्यक्ति विभिन्न प्रकार की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। योगाभ्यास के द्वारा हम ऐसी समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।

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 योग के महत्व

शारिरिक शुद्धता - योग के द्वारा व्यक्ति के शरीर की सफाई हो जाती है। व्यक्ति के शरीर की आंतरिक सफाई का कार्य योग के द्वारा बहुत अच्छे ढंग से किया जा सकता है। मूल रूप से हमारे शरीर में 3 गुण होते हैं। वात, पित्त, कफ । यदि इन तीनों का संतुलन ठीक रहता है, तो व्यक्ति का शरीर बीमारियों से रहित तथा स्वस्थ रहता है। यौगिक क्रियाएँ, जैसे- नेति,धोती, बस्ती, कपालभाति और त्राटक आदि यदि नियमित रूप से करें तो शरीर के आंतरिक सफाई व स्वच्छता होती है।

 मानसिक तनाव को कम करना - योग तनाव को कम करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि अधिकतर व्यक्ति तनाव व दबाव में रहते हैं। उन्हें कहीं पर भी शांति नहीं मिलती इस आधुनिक जीवन में भी अशांत व चिंतित महसूस करते हैं। वे सोचते हैं कि धन उनके जीवन में खुशियां एवं शांति ला सकता है। लेकिन यही धन उनके लिए अधिक तनाव व दबाव लाता है। प्रत्याहार, धारणा व ध्यान मानसिक शांति प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। मकरासन, शवासन, शलभासन,सुप्तासनभुजंगासन आदि यौगिक व्यायाम तनाव से छुटकारा प्राप्त करने के लिए लाभदायक है।

 स्वास्थ्य में सुधार करता है - योग स्वास्थ्य को बनाए रखने में व सुधार करने में सहायता करता है। वह हमारे शरीर की मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाता है तथा शरीर के अन्य संस्थानों; जैसे- श्वसन, उत्सर्जन,रक्त प्रवाह, स्नायु व ग्रन्थि संस्थानों को भी व्यवस्थित करता है। यह शरीर के इन संस्थानों की कार्यकुशलता को बढ़ाता है, जिसके परिणाम स्वरूप स्वास्थ्य में सुधार होता है।

मोटापे को कम करता है - मोटापा एक विश्वव्यापी समस्या है। स्थूल व्यक्ति ही प्राय: विभिन्न रोगों के शिकार होते हैं। यौगिक व्यायाम मोटापे को कम करने में सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए, प्राणायाम व योगासन विशेष रूप से ध्यानात्मक आसन मोटापे को कम करता हैं। अनुसंधान अध्ययन यह दर्शा चुके हैं कि मोटापा तनाव व दबाव के कारण भी होता है। इसीलिए ध्यानात्मक आसनों के माध्यम से मानसिक तनाव को कम कर के मोटापे को कम किया जा सकता है।credit: third party image reference

 रोगों से बचाव - रोग अनेक रोगों से केवल बचाव ही नहीं करता, अपितु इन रोगों का उपचार भी करता है। विभिन्न यौगिक व्यायाम, व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाते हैं। यदि एक व्यक्ति नियमित रूप से योग व्यायाम करता हैं, तो वह प्राय: बीमारियों का शिकार ही नहीं होता। मण्डूकासनवज्रासन करने से मधुमेह का रोग दूर हो जाता हैं। इसी प्रकार योग द्वारा बीमारियों उपचार किया जा सकता है।

योग शरीर को सुंदर बनाता है - इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति सुंदर शरीर जाता है, क्योंकि शरीर की सुंदरता की प्रत्येक समाज में प्रशंसा की जाती है। आजकल मोटापे की समस्या एक आम समस्या बन चुकी है। प्रत्येक व्यक्ति दुबला पतला होना चाहता है, क्योंकि कोई भी समाज मोटे व्यक्तियों को पसंद नहीं करता। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए अनेक योगाभ्यास नियमित रूप से किए जा सकते हैं। चेहरे की सुंदरता को बढ़ाने के लिए मयूरासन किया जा सकता है। योग व्यायाम द्वारा चेहरा ज्यादा सुंदर लगता है, जिसके परिणाम स्वरूप चेहरे पर लगाई जाने वाली क्रीमों की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

शिथिलता प्रदान करता है - आराम व शिथिलता, थकावट दूर करने के लिए अति आवश्यक हैं। जब कोई शारिरिक या मानसिक कार्य करते हैं, तो कुछ समय के बाद में थकावट महसूस होने लगती है। ऐसे समय में हम और कार्य नहीं कर पाते। इसीलिए हमें फिर से तरोताजा होने व स्फूर्ति लाने के लिए शिथिलन की होती है। शवासनमकरासन शिथिलता प्राप्त करने हेतु अच्छे आसन होते हैं। पद्मासन एवं नदम साधना मानसिक थकावट दूर करने के लिए अच्छे साधन है।

शरीर के आसन को ठीक रखता है- आजकल व्यक्तियों में आसन संबंधी दोष या विक्रति सामान्य रूप से दिखाई देती है। अच्छे आसन के बिना वे अपने कार्य कुशलतापूर्वक नहीं कर सकते। जीवन का आनंद नहीं उठा सकते। वे साधारण से साधारण कार्य में भी से अधिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं। यह हम नियमित रूप से योगासन करें तो, हम अपने शरीर को ठीक रख सकते हैं। आसन से हम सभी दोषों को भी ठीक कर सकते है। योग से हम अपने शरीर को उत्कृष्ट या सर्वोत्तम दशा में रख सकते हैं।

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जीवन की गति बहुत तेज हो चुकी है। प्रत्येक व्यक्ति के पास समय की कमी है। गैर योगिक व्यायाम को करने में अधिक समय व धन खर्च होता है। जबकि योग को आसानी पूर्वक किया जा सकता है। यह व्यायाम कम अवधि में किए जा सकते हैं, तथा इनको करने के लिए खर्च भी बहुत कम होता है। नियमित रूप से योग व्यायाम करने से मस्तिष्क पर नियंत्रण किया जा सकता है। लचक में वृद्धि करता है। आजकल नैतिक मूल्यों में गिरावट के प्रवृति है। अष्टांग योग के प्रथम दो तत्वों का पालन करने से नैतिक मूल्यों को बढ़ाया जा सकता है।

संक्षेप में यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि आधुनिक जीवन में मनुष्य के लिए विशेष रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि व्यक्ति योग्यता है तो कर सकता है तथा शांतिपूर्ण उपयोग जीवन व्यतीत कर सकता है।credit: third party image reference

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